أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
दूसरा बाब
हिक़ायत 16
कूज़े में दरिया
हुदैबिया के रोज़ सारे लशकरे सहाबा में पानी खत्म हो गया हत्ता कि व और पीने के लिये भी पानी का एक कतरा तक न रहा। हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) के पास एक कूज़ा पानी का था। हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) जब उस कूजा से वुज़ू फरमाने लगे तो सब लोग हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) की तरफ लपके और फरयाद की कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! हमारे पास तो एक कतरा भी पानी का बाकी न रहा। न तो वुज़ू कर सकते हैं और न ही अपनी प्यास बुझा सकते हैं। हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) यह आप ही के कूज़े में पानी बाकी है। हम सबके पास पानी खत्म हो गया और हम प्यास की शिद्दत से बेचैन हैं । हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने यह बात सुनकर अपना हाथ मुबारक उस कूज़े में डाल दिया लोगों ने देखा कि हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) के हाथ मुबारक की पांचों उंगलियों से पानी के पांच चश्मे जारी हो गये। सब लोग इन चश्मों से सैराब होने लगे। हर शख्स ने जी भर के पानी पिया और प्यास बुझाई। सबने वुज़ू भी कर लिया। हज़रत जाबिर से पूछा गया कि लशकर की तादाद कितनी थी? तो फरमाया उस वक्त अगर एक लाख आदमी भी होते तो वह पानी सबके लिये काफी था मगर हम उस वक्त पंद्रह सौ की तादाद में थे।
{मिश्कात शरीफ़ सफ़ा -524}(सच्ची हिकायत, हिस्सा अव्वल )
सबक़ : हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को अल्लाह तआला ने यह इख़्तियार व तसर्रुफ अता फरमाया है कि आप थोड़ी चीज़ को ज्यादा कर देते हैं। "न" से हां और मादूम से मौजूद करना अल्लाह का काम है। थोड़े से ज्यादा कर देना मुस्तफ़ा का काम है। यह अल्लाह ही की अता है।
(सच्ची हिक़ायत ,हिन्दी पेज 32)
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