हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु और एक दहरिया मल्लाह

                      أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم



                         بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

पहला बाब

वुजूद-ए-बारी तआला


हिक़ायत 2



हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु और एक दहरिया  मल्लाह 



 ख़ुदा की हस्ती के एक मुनकिर की ( जो मल्लाह था ) हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु से बातचीत हुई। वह मल्लाह कहता था कि ख़ुदा कोई नहीं ( मआज़ल्लाह! ) हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु ने उससे फ़रमाया तुम जहाज़रान ( जहाज़ चलाने वाले ) हो तो यह बताओ कभी समुंद्री तूफ़ान से भी तुम्हारा सामना पड़ा। वह बोला हां! मुझे अच्छी तरह याद है कि एक मर्तबा समुन्द्र के सख्त तूफ़ान में मेरा जहाज़ फंस गया था। हज़रत इमाम ने फ़रमाया फिर क्या हुआ ? वह बोला मेरा जहाज़ ग़र्क़ हो गया और सब लोग जो उस पर सवार थे डूबकर हलाक हो गए।  आपने पूछा: तुम कैसे बच गए ? वह बोला: मेरे हाथ जहाज़ का एक तख्ता आ गया मैं उसी के सहारे तैरता हुआ साहिल के कुछ करीब पहुच गया। मगर अभी साहिल दूर ही था कि तख्त भी हाथ से छूट गया फिर मैंने खुद ही कोशिश शुरू कर दी। हाथ पैर मारकर किसी न किसी तरह किनारे आ लगा। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ रज़ियल्लाहु फरमाने लगे! अब सुनो:
    जब तुम अपने जहाज़ पर सवार थे तो तुम्हे अपने जहाज़ पर एतमाद व भरोसा था कि यह जहाज़ पार लगा देगा। फिर वह डूब गया तो फिर तुम्हारा एतमाद व भरोसा उस तख्ते पर रहा जो इत्तिफ़ाक़न तुम्हारे हाथ लग गया था। मगर जब वह भी तुम्हारे हाथ से छूट गया तो अब सोचकर बताओ कि इस बेसहारा वक़्त और बेचारगी के आलम में भी क़्यों तुम्हें यह उम्मीद थी कि अब भी कोई बचाना चाहे तो मैं बच सकता हूँ ? वह बोला: हाँ यह उम्मीद तो थी।  हज़रत ने फ़रमाया - मगर वह उम्मीद थी किस से कि कौन बचा सकता है ? अब वह देहरिया खामोश हो गया। आपने फ़रमाया - खूब याद रखो! इस बेचारगी के आलम में तुम्हे जिस ज़ात पर उम्मीद थी वही ख़ुदा है और उसी ने तुम्हें बचा लिया था।  मल्लाह यह सुनकर होश में आ गया और इस्लाम ले आया। 


     सबक़: ख़ुदा है, और यक़ीनन है। मुसीबत के वक़्त ग़ैर-इख़्तेयारी तौर पर भी ख़ुदा की तरफ ख़्याल जाता है।  गोया ख़ुदा की हस्ती का इख़्तियार फ़ितरी चीज़ है। 


(सच्ची हिक़ायत हिन्दी ,पेज 15,16)

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