एक अक़्ल मन्द बुढ़िया




                                   أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم         


                                            بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ          


पहला बाब


वुजूद-ए-बारी तआला



हिक़ायत-3 


एक अक़्लमंद बुढ़िया 


    एक आलिम ने एक बुढ़िया को चरखा कातते देखकर फ़रमाया कि बड़ी बी! सारी उम्र चरखा ही काता या कुछ अपने खुदा की पहचान की? बुढ़िया ने जवाब दिया कि बेटा सबकुछ इसी चरखे में देख लिया। फ़रमाया:बड़ी बी! यह बताओ कि खुदा मौजूद है या नहीं? बुढ़िया ने जवाब दिया कि हाँ! हर घड़ी और रात दिन हर वक़्त खुद मौजूद है। आलिम ने पूछा मगर इसकी दलील? बुढ़िया बोली दलील मेरा यह चरखा।  आलिम ने पूछा: यह कैसे? वह बोली वह ऐसे कि जब तक मैं इस चरखे को चलाती रहती हूँ यह बराबर चलता रहता है और जब मैं इसे छोड़ देती हूँ तब यह ठहर जाता है। तब यह ठहर जाता है। तो जब इस छोटे से चरख़े को हर वक़्त चलाने की ज़रूरत है तो ज़मीन व आसमान, चांद सूरज के इतने बड़े-बड़े चरख़ों को किस तरह चलाने वाले की ज़रूरत न होगी ? पस इसी तरह ज़मीन व आसमान के चरख़े  चलने वाला चाहिए। जब तक वह चलाता रहेगा यह सब चरख़े चलते रहेंगे और जब वह छोड़ देगा तो ठहर जाएंगे। मगर हमने कभी ज़मीन व आसमान, चांद सूरज को ठहरे नहीं देखा तो जान लिया कि उनका चलाने वाला हर घड़ी मौजूद है।
          मौलवी साहब ने सवाल किया कि आसमान व ज़मीन का चरखा चलाने वाला एक है या दो ? बुढ़िया ने जवाब दिया कि एक है। दावे की दलील भी यही मेरा चरख़ा है। क्योंकि जब इस चरख़े को  अपनी मर्ज़ी से एक तरफ चलाती हूँ यह चरख़ा मेरी मर्ज़ी से एक ही  चलता है और अगर कोई दूसरी चलाने वाली भी होती तो यह मेरी मददगार होकर मेरी मर्ज़ी के मुताबिक चरख़ा चलाती। तब तो चरख़े की रफ़्तार तेज़ हो जाती और इस चरख़े की रफ़्तार में फ़र्क़ आकर नतीजा हासिल न होता। अगर वह मेरी मर्ज़ी के खिलाफ़ और मेरे मुख़ालिफ़ ज़ेहत पर चलाती तो चरख़ा चलने से ठहर जाता या टूट जाता। मगर ऐसा नहीं होता। इस वजह से कि दूसरी चलाने वाली नहीं है। इसी तरह आसमान व ज़मीन का चलाने वाला अगर कोई दूसरा होता तो ज़रूर आसमानी चरख़े की रफ़्तार तेज़ होकर दिन-रात का निज़ाम में फ़र्क़ आ जाता या चलने से ठहर जाता या टूट जाता। जब ऐसा नहीं है तो ज़रूर आसमान व ज़मीन के चरख़े को चलाने वाला एक ही है।
                                                                                   (सीरतुस्सालिहीन सफ़ा 3)




सबक़: दुनिया की हर चीज़ अपने ख़ालिक़ के वुजूद और उसकी यक्ताई पर शाहिद है। मगर अक़्ले सलीम दरकार है।

  (सच्ची हिक़ायत हिन्दी ,पेज 16,17)

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