एक सहराई काफ़िला

 أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم 


               بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ   




दूसरा बाब


हिक़ायत 17


एक सहराई काफ़िला


अरब के एक सहरा में एक बहुत बड़ा काफिला राहे पैमा था कि अचानक उस काफिला का पानी खत्म हो गया। उस काफिला में छोटे बड़े बूढ़े जवान और मर्द व औरतें सभी थे। प्यास के मारे सबका बुरा हाल था। दूर तक पानी का निशान तक न था। पानी उनके पास एक कतरा तक बाकी न रहा था यह आलम देखकर मौत उनके सामने रक्स करने लगी। उन पर यह खास करम हुआ कि अचानक दो जहां के फरयाद-रस मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उनकी मदद फरमाने वहां पहुंच गये। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को देखकर सबकी जान में जान आ गई। सब । हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के गिर्द जमा हो गये। । हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन्हें तसल्ली दी और फरमाया कि वह सामने जो टीला है उसके पीछे एक स्याह रंग हब्शी गुलाम ऊंटनी पर सवार जा रहा है। उसके पास पानी का एक मश्कीज़ा है। उसको ऊंटनी समेत मेरे पास ले लाओ। चुनांचे कुछ आदमी टीले के उस पार गये तो देखा कि वाकई एक ऊंटनी पर सवार हब्शी जा रहा है वह उस हब्शी को हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास ले आये। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उस हब्शी से मश्कीज़ा ले लिया। अपना दस्ते रहमत उस मश्कीज़ा पर फेरकर उसका मुंह खोल दिया। फ़रमाया : आओ अब जिस कद्र भी प्यासे हो आते जाओ और पानी पी-पीकर अपनी प्यास बुझाते जाओ। चुनांचे सारे काफिले ने उस मश्कीज़ा से जारी चश्मए रहमत से पानी पीना शुरू किया फिर सबने अपने अपने बर्तन भी भर लिये। सब के सब सैराब हो गये। सब बर्तन भी पानी से भर गये। । हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का यह मोजिज़ा देखकर हब्शी बड़ा हैरान हुआ। । हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दस्ते अनवर चूमने लगा। । हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपना दस्ते अनवर उसके मुंह पर फेर दिया तो उस हब्शी का स्याह रंग काफूर हो गया। वह सफेद पुरनूर हो गया। फिर उस हब्शी ने कलिमा पढ़कर अपना दिल भी मुनव्वर कर लिया। मुसलमान होकर जब वह अपने मालिक के पास पहुंचा, तो मालिक ने पूछा तुम कौन हो? वह बोला तुम्हारा गुलाम हूं। मालिक ने कहाः तुम गलत कहते हो। वह तो बड़ा स्याह रंग का था वह बोला यह ठीक है मगर मैं उस मम्बअ-ए-नूर जाते बा-बरकात से मिलकर और उस पर ईमान लाकर आया हूं जिसने सारी काइनात को मुनव्वर फरमा दिया है।मालिक ने सारा किस्सा सुना तो वह भी ईमान ले आया। 

(मसनवी शरीफ ,सच्ची हिकायत हिस्सा अव्वल)


सबक : 

हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह की रज़ा से दो जहान के फरयाद-रस हैं और मुसीबत के वक़्त मदद फरमाने वाले हैं। फिर अगर कोई शख़्स यूं कहे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम किसी की मदद नहीं फरमा सकते और किसी की फरयाद नहीं सुनते तो वह किस कदर जाहिल व बेख़बर है। पस अपना अक़ीदा यह रखना कि चाहिये कि -

फ़याद उम्मती जो करे हाले जार में

मुमकिन नहीं कि खैरे बशर को ख़बर न हो।


(सच्ची हिकायत, हिन्दी पेज 32,33)

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