दूसरा बाब
हिक़ायत 15
हज़रत जाबिर का मकान और एक हज़ार मेहमान
हज़रत जाबिर रदियल्लाहु अन्ह ने जंगे ख़न्दक के दिनो हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) के शिकम अनवर पर पत्थर बंधा देखा तो घर आकर अपनी बीवी से कहा के क्या घर मे कुछ है ताके हम हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) के लिए कुछ पकाए और हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) को खिलाए ? बीवी ने कहा, थोड़े से जौ हैं और ये एक बकरी का छोटा बच्चा है इसे जिब्ह कर लेते है, आप हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम)) को बुला लाईए मगर चूँके वहां लशकर बहूत ज्यादा है इसलिए हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) से पौशीदगी मे कहिएगा के वो अपने हमराह दस आदमीयों से कुछ कम ही लाए। ज़ाबिर ने कहा, तो लो मै इस बकरी के बच्चे को ज़बह करता हूं, चुनाँचे ज़ाबिर हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) की खिदमत मे पहुचे और कान मे अर्ज़ किया हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) मेरे हाँ तशरीफ़ ले चलिये और अपने साथ दस आदमी से कुछ कम ले चलिये। हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने सारे लश्कर को मुख़ातिब फ़रमाकर फरमाया चलो मेरे साथ चलो ज़ाबिर ने खाना पकाया है और फिर ज़ाबिर के घर आकर हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने उस थोड़े से आटे मे अपना थूक मुबारक डाल दिया और फिर हुक्म दिया के अब रोटियाँ और हंडिया पकाओ, चुनाँचे उस थोड़े से आटे और गोस्त मे थूक मुबारक की बरकत से इतनी बरकत पैदा हुई के एक हज़ार आदमी खाना खा गया मगर ना कोई रोटी कम हुई और ना कोई बोटी।
{मिश्कात शरीफ़ सफ़ा -524}
(सच्ची हिकायत, हिस्सा अव्वल )
सबक:-
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ये हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) के थूक मुबारक की बर्कत थी कि थोडे से खाने मे इतनी बर्कत पैदा हो गई के हज़ार आदमी शेर शिकम हो कर खा गया लेकिन खाना बदस्तुर वैसा का वैसा ही रहा और कम ना हुआ और ये हुज़ूर (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) की थूक मुबारक है और जो उनकी मिस्ल बशर बनने वाले है और वो कभी अपने घर की हंडी मे भी थूके तो उनकी बीवीयाँ ही वो हंडिया बाहर फेक देंगी और कोई खाने को तैयार ना होंगा, गोया उनके थूक से थोड़ा बहुत खाने से भी जवाब।
सच्ची हिक़ायत ,हिन्दी पेज 31)
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