أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
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Sachchi Hikayat Hindi |
दूसरा बाब
हिक़ायत 43
मदीना मुनव्वरा में एक हाशमी औरत रहती थी। उसे बाज़ लोग ईज़ा दिया करते थे। एक दिन वह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रौज़ा पर हाज़िर हुई। अर्ज़ करने लगीः या रसूलल्लाह! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम यह लोग मुझे ईज़ा देते हैं। रौज़ए अनवर से आवाज़ आई : क्या मेरा उस्वा-ए-हस्ना तुम्हारे सामने नहीं । दुशमनों ने मुझे ईज़ाएं दी और मैंने सब्र किया। मेरी तरह तुम भी सब्र करो। वह औरत फ़रमाती है कि मुझे बड़ी तस्कीन हुई और चंद दिन के बाद मुझे ईजा देने वाले भी मर गये।
(शवाहिदुल-हक सफा 165)
सबक : हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम सबकी सुनते हैं और हर मज़लूम के लिये आप ही का दर जाए पनाह । या रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) कहने से हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की जानिब से रहमत व तस्कीन हासिल होती है।
( सच्ची हिकायत, हिस्सा अव्वल ,हिन्दी पेज 52,53)
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