उम्मे फ़ातिमा

 أعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم

           
   بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ  

Sachchi Hikayat Hindi

  

दूसरा बाब





हिक़ायत 42








उम्मे फ़ातिमा

स्कंदरिया की एक औरत उम्मे फातिमा मदीना मुनव्वरा में हाज़िर हुई तो उसका एक पैर जख्मी हो गया। हत्ता कि वह चलने से रह गई। लोग मक्का मोअज्जमा जाने लगे मगर वह वहीं रह गई। एक दिन वह किसी तरह रौज़ए अनवर पर हाज़िर हुई। रौज़ए अनवर का तवाफ़ करने लगी। तवाफ़ करती जाती और कहती जाती, या हबीबी या रसूलल्लाह! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम लोग चले गये और मैं रह गई। हुजूर! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम या तो मुझे भी वापस भेजिये या फिर अपने पास बुला लीजिये। यह कह रही थी कि तीन अरबी नौजवान मस्जिद में दाखिल हुए और कहने लगे कि कौन मक्का मोअज्जमा जाना चाहता है। फ़ातिमा ने जल्दी से कहाः मैं जाना चाहती हूं।उनमें से एक बोला तो उठो । फातिमा बोलीं: मैं उठ नहीं सकती। उसने कहा अपना पैर फैलाओ। तो फातिमा ने अपना सूजा हुआ पैर फैलाया। उसका जब सूजा हुआ पैर देखा तो तीनों बोलेः हां यही वह है। फिर तीनों आगे बढ़े और उम्मे फ़ातिमा को उठाकर सवारी पर बैठा दिया और मक्का मोज्जमा पहुंचा दिया। दर्याफ्त करने पर उनमें से एक नौजवान ने बताया कि मुझे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ख़्वाब में हुक्म फ़रमाया था कि उस औरत को मक्का पहुंचा दो। उम्मे फ़ातिमा कहती हैं कि मैं बड़े आराम से मक्का पहुंची।

(शवाहिदुल हक सफा 164)

सबक : हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम आज भी हर फरयादी की फरयाद सुनते हैं। हर मुश्किल हल फ़रमा देते हैं। बशर्ते कि फरयादी दिल और सच्ची अकीदत से या हबीबी या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहने का भी आदी हो।

( सच्ची हिकायत, हिस्सा अव्वल ,हिन्दी पेज 51,52)

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