मूसा अलैहिस्सलाम का मुक्का

أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم 

            
   بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ  



तीसरा बाब


हिकायत 70



मूसा अलैहिस्सलाम का मुक्का


हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जब तीस बरस के हो गए। तो एक दिन फिरऔन के महल से निकल कर शहर में दाखिल हुए तो आपने दो आदमी आपस में लड़ते झगते देखा। एक तो फिरऔन का बावर्ची था और दूसरा हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की कौम यानी बनी इस्राईल में से था। फिरऔन का बावर्ची लकड़ियों का गठ्ठा उस दूसरे आदमी पर लाद कर उसे हुक्म दे रहा था। के वो फिरऔन के बावर्ची खाने तक वो लकड़ियों ले चलें हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने, ये बात देखी तो फिरऔन के बावर्ची से फरमाया। उस गरीब आदमी पर जुल्म ना कर लेकिन वो बाज़ ना आया। और बद ज़बानी पर उतर आया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे एक मुक्का मारा। तो उस एक ही मुक्के से उस फिरऔनी का दम निकल गया। और वो वहीं और हो गया।

 (कुरआन करीम पारा 20 रूकू 5 रूहुल बयान सफा 925 जिल्द 2) 

सबकः अम्बिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम मज़लूमों के हामी बनकर तशरीफ लाए हैं और ये भी मालूम हुआ के नबी सीरत व सूरत और ज़ोर व ताकत में भी सबसे बुलंद व बाला होता है और नबी का मुक्का एक इम्तियाज़ी मुक्का था। के एक ही मुक्के से ज़ालिम का काम तमाम हो गया।
सच्ची हिकायत, हिस्सा अव्वल ,हिन्दी पेज 85)
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