أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
दूसरा बाब
हिक़ायत 47
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Sachchi Hikayat Hindi |
उन्दलुस के एक मर्दे सालेह (नेक आदमी) के लड़के को शाहे रोम ने कैद कर लिया था। वह मर्दे सालेह फरयाद लेकर मदीना मुनव्वरा को चल पड़ा। रास्ते में एक दोस्त मिला। उसने पूछा कहां जा रहे हो? तो उसने बताया कि मेरे लड़के को शाहे रोम ने कैद कर लिया है और तीन सौ रुपये उस पर जुर्माना कर दिया है। मेरे पास इतने रुपये नहीं जो देकर मैं उसे छुड़ा सकू । इसलिये मैं हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास फ़रियाद लेकर जा रहा हूं। उस दोस्त ने कहाः मगर मदीना मुनव्वरा ही पहुंचने की क्या ज़रूरत है? हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से तो हर मकाम पर शफाअत कराई जा सकती है। उसने कहा ठीक है। मगर मैं तो वहीं हाज़िर हूंगा। चुनांचे वह मदीना मुनव्वरा हाज़िर हुआ और रौज़ए मुनव्वरा की हाज़िरी के बाद अपनी हाजत अर्ज़ की फिर ख़्वाब में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत हुई तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उससे फ़रमायाः जाओ अपने शहर पहुंचो । चुनांचे वह वापस आ गया और घर आकर देखा कि लड़का घर आ गया है। लड़के से रिहाई का किस्सा पूछा तो उसने बताया कि फुलां रात मुझे और मेरे सब साथी कैदियों को बादशाह ने खुद ही रिहा कर दिया है। उस मर्दे सालेह ने हिसाब लगाया तो यह वही रात थी जिस रात हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़्यारत हुई थी और आपने फ़रमाया थाः ‘जाओ, अपने शहर पहुंचो।'
(हुज्जतुल्लाह अलल-आलमीन, सफा 780)
सबक : हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हर मुसीबत ज़दा की मदद फ़रमाते हैं। कब्रे अनवर में तशरीफ़ फ़रमा होकर भी अपने गुलामों की मदद फ़रमाते हैं। उनके गुलाम किसी मकान से भी उनकी तरफ़ तवज्जह करें हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की रहमत उनका काम कर देती है। यह भी मालूम हुआ कि पहले बुज़ुर्ग भी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बरगाह में फरयाद किया करते थे। उसे किसी ने भी शिर्क नहीं कहा।
(सच्ची हिकायत, हिन्दी पेज 55)
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