ख़ालिद रदियल्लाहु अन्हु की टोपी

 दूसरा बाब

हिक़ायत 11


खालिद  رضي الله عنه  की टोपी


हज़रत खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु जो अल्लाह की तलवारों मे से एक तलवार थे। आप जिस मैदाने जंग में तशरीफ ले जाते अपनी टोपी को ज़रुर सर पर रख कर ले जाते और हमेशा फतह ही पाकर लौटते- कभी शिकस्त का मुंह न देखते। एक मर्तबा  जंगे यरमूक़ में जबकि मैदाने जंग गर्म हो रहा था हज़रत खालिद की टोपी गुम हो गयी। आपने लड़ना छोड़कर टोपी की तलाश शुरु कर दी।  लोगो ने जब देखा की तीर और पत्थर बरस रहे हैं, तलवार और नेजा अपना काम कर रहे हैं, मौत सामने है। इस आलम में खालिद को अपनी टोपी की पड़ी है। वह उसी को ढूढने में मसरुफ हो गये। तो उन्होने हज़रत खालिद रदियल्लाहु अन्हु से कहा :-जनाब टोपी का ख्याल छोड़िए और लड़ना शुरु कीजिए। हज़रत खालिद रदियल्लाहु अन्हु ने उनकी इस बात की परवाह ना की और टोपी की बदस्तूर तलाश शुरु रखी। आखिर टोपी उनको मिल गयी तो उन्होंने खुश होकर कहा:- भाईयों! जानते हो मुझे यह टोपी इतनी अज़ीज़ क्यों है? जान लो मैने आज तक जो जंग भी जीती इसी टोपी के तुफैल।  मेरा क्या है? सब इसी की बरकतें है। मैं इसके बगैर कुछ भी नही। अगर यह मेरे सर पर हो तो फिर दुश्मन मेरे सामने कुछ भी नही। लोगो ने कहा:-आखिर इस टोपी में क्या खूबी है ??फरमाया: यह देखो क्या है? यह हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सरे अनवर का बाल मुबारक है जो मैने इसी में सी रखे हैं।  हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक मर्तबा उमरा बजा लाने को बैतुल्लाह तशरीफ ले गये। सरे मुबारक के बाल उतरवाए तो उस वक़्त हम में से हर एक शख्स बाल मुबारक लेने की कोशिश कर रहा था और हर एक दूसरे पर गिरता था तो मैने इसी कोशिश में आगे बढ़कर चंद बाल मुबारक हासिल कर लिए थे। फिर इसी टोपी मे सी लिए। यह टोपी अब मेरे लिए जुम्ला बरकत व फुतूहात का ज़रिया है। मै इसी के सदक़े में हर मैदान का फातेह बनकर लौटता हूं। फिर बताओ यह टोपी अगर न मिलती तो मुझे चैन कैसे आता?
{हुज्जतुल्लाहुल आलमीन, सफा-686, 

सबक़: हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़ात जुम्ला बरकत व इनाआमात का ज़रिया है। आपके बाल शरीफ भी बरकत व रहमत हैं। यह भी मालूम हुआ की सहाबाए किराम  हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मुतअल्लिक़ अशिया को बतौर तबर्रुक अपने पास भी रखते थे। जिसके पास आपका बाल मुबारक होता अल्लाह तआला उसे कामयाबियों से सरफराज़ फरमाता था।

(सच्ची हिक़ायत, हिन्दी पेज28,29 )

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