أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
तीसरा बाब
हिकायत 60
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हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम और खुदा की क़ुदरत के करिश्मे
बनी इस्राईल जब खुदा की नाफरमानी में हद से ज़्यादा बढ़ गए। तो खुदा ने उन पर एक जालिम बादशाह बख्त नस्र को मुसल्लत कर दिया। जिसने बनी इस्राईल को कत्ल किया। गिरफ्तार किया। और तबाह किया। और बैत-उल-मुक्दस को बर्बाद व वीरान कर डाला। हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम एक दिन शहर में तशरीफ लाए तो आपने शहर को वीरानी और बर्बादी को देखा। तमाम शहर में फिरे। किसी शख्स को वहां ना पायां। शहर की तमाम इमारतों को मुनहदिम देखा! ये मन्ज़र देखकर आपने बराह तआज्जुब फरमाया।
اَنّٰى یُحْیٖ هٰذِهِ اللّٰهُ بَعْدَ مَوْتِ
“अल्लाह तआला इस शहर की मौत के बाद उसे फिर कैसे ज़िन्दा फरमायेगा ?
आप एक गधे पर सवार थे। और आपके पास एक बर्तन खजूर और एक पियाला अंगूर के रस का था। आपने अपने गधे को एक दरख्त से बांधा और उस दरख़्त के नीचे आप सो गए। जब सो गए। तो खुदा ने उसी हालत में आपकी रूह कब्ज़ कर ली। और गधा भी मर गया। इस वाकेये के सत्तर साल बाद अल्लाह तआला ने शाहाने फारस में से एक बादशाह को मुसलल्लत किया। और वो अपनी फौजें लेकर बैत-उल-मुक्दस पहुँचा। और उसको पहले से भी बेहतर तरीके पर आबाद किया और बनी इस्राईल में से जो लोग बाकी रहे थे। खुदा तआला उन्हें फिर यहाँ लाया। और वो बैत-उल-मुकूदस और उसके नवाह में आबाद हुए। और उनकी तअदाद बढ़ती रही। उस जमाना में अल्लाह तआला ने हजूरत उज़ैर अलैहिस्सलाम को दुनिया की आँखों से पौशीदा रखा। और कोई आपको देख ना सका जब आपकी वफात को सौ साल गुज़र गए। तो अल्लाह तआला ने दोबारह आपको ज़िन्दा किया। पहले आँखों में जान आईं। अभी तमाम जिस्म मुर्दा था। वो आपके देखते देखते जिन्दा किया गया। जिस वक्त आप सोए थे। वो सुबह का वक्त था। और सौ साल के बाद जब आप दोबारह ज़िन्दा किए गए तो ये शाम का वक्त था। ख़ुदा ने पूछा। ऐ उज़ैर! तुम यहाँ कितना ठहरे? आपने अंदाज़े से अर्ज़ किया के एक दिन या कुछ कम। आपका खयाल ये हुआ के ये उसी दिन की शाम है जिसकी सुबह को सोए थे। खुदा ने फरमाया। बल्के तुम तो सौ बरस ठहरे हो। अपने खाने और पानी यानी खजूर और अंगूर के रस को देखिये के वैसा ही है इसमें बू तक नहीं आई और अपने गथे को भी जरा देखिए। आपने देखा। तो वो मरा हुआ और गल चुका था।
आज़ा उसके बिखरे हुए और हड्डियाँ सफेद चमक रही थीं। आपकी निगाह के सामने अल्लाह ने उस गधे को भी जिन्दा फरमाया। पहले उसके आज़ा जमा हुए और अपने अपने मौके पर आए। हड्डियों पर गोश्त चढ़ा। गोश्त पर खाल आई। बाल निकले फिर उसमें रूह आई। और आपके देखते देखते ही वो उठकर खड़ा हुआ। और आवाज़ करने लगा। आपने अल्लाह की क़ुदरत का मुशाहेदा किया। और फरमाया मैं जानता हूँ के अल्लाह तआला हर शै पर कादिर है। फिर आप अपनी सवारी पर सवार होकर अपने मोहल्ले में तशरीफ लाए।
कोई पहचानता ना था। अंदाज़े से आप अपने मकान पर पहुँचे उम्र आपकी वही चालीस साल की थी। एक जईफ बूढ़िया मिली। जिसके पाऊँ रह गए थे और नाबीना(अन्धी) थी। वो आपके घर की बांदी थी और उसने आपको देखा था। आपने उससे पूछा के ये उज़ैर अलैहिस्सलाम का मकान है। उसने कहा हाँ मगर उज़ैर अलैहिस्सलाम को गुम हुए सौ बरस गुज़र गए। ये कह कर खूब रोई। आपने फरमाया अल्लाह तआला ने मुझे सौ बरस मुर्दा रखा फिर ज़िन्दा किया। बूढ़िया बोली। उज़ैर अलैहिस्सलाम मुसतजाब-उल-दावात थे। जो दुआ करते कूबूल हो जाया करती थी अगर आप उज़ैर अलैहिस्सलाम है तो दुआ कीजिये की मैं बिना ( आंखों की रौशनी वाली) हो जाऊं। ताकि मैं अपनी आँखों से आप को देखूँ।
आपने दुआ की तो वो बीना हो गई। फिर आपने उसका हाथ पकड़ कर फरमाया खुदा के हुक्म से उठ। ये फरमाते ही उसके मरे हुए पाऊँ भी दुरूस्त हो गए उसने आपको देख कर पहचाना और कहा। मैं गवाही देती हूँ। के आप बेशक उज़ैर अलैहिस्सलाम ही हैं। फिर वो आपको मोहल्ले में ले गई। वहाँ एक मजलिस में आपके फरज़न्द थे। जिनकी उम्र एक सौ अट्ठारह साल की हो चुकी थी। और आपके पोते भी थे। जो बूढे हो चुके थे। बूढ़िया ने मजलिस में पुकारा। ये हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम तशरीफ लाए हैं, अहले मजलिस ने उस बात को झुटलाया। उसने कहा मुझे देखो मैं आपकी दुआ से बिलकुल तनदुरूस्त और बीना हो गई हूँ। लोग उठे और आपके पास आए। आपके फज़न्द ने कहा। मेरे वालिद साहब के शानों के दरमियान सियाह बालों का एक हलाल था। जिस्म मुबारक खोल कर देखा गया। तो वो मौजूद था। (कुरआन करीम प० 3 रूकू 3 और खज़ायन-उल-इर्फान सफा 65)
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सबक:- खुदा की नाफरमानी का एक नतीजा ये भी है। ज़ालिम हाकिम मुसल्लत कर दिए जाते हैं। और मुल्क बर्बाद व वीरान हो जाते हैं। और अल्लाह तआला बड़ी क़ुदरतों का मालिक है। वो जो चाहे कर सकता है और एक दिन उसने सब को दोबारह ज़िन्दा करके अपने हुज़र बुलाना है और हिसाब लेना है और ये भी मालूम हुआ के नबी का जिस्म मौत वारिद होने के बाद भी सही सालिम रहता है। हाँ जो गधे हैं वही मर कर मिट्टी में मिल जाते और मिट्टी हो जाते हैं।
(सच्ची हिकायत, हिस्सा अव्वल ,हिन्दी पेज 67,68)
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